Saturday, January 28, 2006

बस युँ ही

आज मैने रंग दे बसंती देखी. बढिया है. देख लो बिना दिमाग पर जोर डाले.
आजकल समय का बहुत टोटा हो गया है. नये काम पर करीब ११ घंटे रोज खप रहे हैं. आज समय मिला है तो मकान की ढुंढाई चल रही है. ईतनी ठंड में बाहर जा कर मकान देखने में बारह बज जाती है. ठंड में दिमाग पर भी ताला लग गया है, कुछ मसला ही नही मिल रहा है चेपने को.
ठंड में पीना हो तो बस "जैक डेनियल" के साथ कोक मिलाओ और मजे करो.

Sunday, January 22, 2006

लो मै॓ आ गया.

काफी दिनो॓ के बाद आज लिखने का अवसर मिला है. अभी कुछ दिनों से मैं घर बदली में व्यस्त था. फिनिक्स की गरमी से उठ कर मिनिसोटा की सरदियों में. काफी उदास मौसम है. कडाके की ठंड है. पर क्या करो लालच है नौकरी का जो खीँच लाया है. जो लोग बरफ में नही रह रहे हैं उन सभी समझदारों को मेरा सलाम. कसम से किस बेवकूफ ने सोचा होगा ईतनी ठंड में बस्ती बनाने का. अगर कभी कार बंद हो गई ठंड में तो लगता है एंबुलैंस बुलानी पडेगी.
हर तरफ बरफ ही दिखाई देती है. सारा शहर बरफ से पटा पडा है. किसी भी चीज पर खुला हाथ रख दिया तो बारह बज जाती है.

बाकी बाद में, कुछ पेट में दाना डाला जाए.

Saturday, January 07, 2006

आस्ट्रेलिया है सही चेम्पियन

वैसे तो में क्रिकेट के बारे में ज्यादा लिखता नही हुँ क्योंकि सभी जनता जनार्दन रिडिफ,ईंडिया टाईम्स पर क्रिकेट चाट कर ही ब्लाग-बाँची करती है. पर जो जीत आस्ट्रेलिया ने साोउथ-अफ्रीका पर हासिल करी है वह मुझे काफी प्रेरणादायी लगी, ना सिर्फ खेल के मैदान में बल्कि जीवन के खेल में भी. प्रोत्साहन के योग्य तो स्मिथ भी हैं जिनहोने सीरिज बराबर करने के लिए सोच-समझ के एक चुनौती रखी रिकी पोंटिग के सामने. जो साहस, आत्मविश्वास, चुनौती का सामना करने का जज्बा आस्ट्रेलिया ने दिखाया है वो मेरी सोच में सच्चे चैंपियन बनने की राह दिखाता है जीवन के हर पहलु में. कई बार हमारे सामने जीवन विकल्प रख देता है. अकसर एक रास्ता होता है जो १-० के ड्रा वाली विजय की तरफ ले जाता है. काम तो चल ही जाएगा, सुरक्षित राह, बिना जोखम का, बिना परिवर्तन का. और दुसरा होता है द्रुगम जिसमें खतरे होते हैं, काबिलियत का इम्तेहान होता है पर जो विजय होती है वह सम्पूर्ण होती है. रिकी पोंटिग ने सिखाए हैं असली लीडर के गुण. देखें हमारे नेता (सॉारी क्रिकेटर) क्या करते हैं पाकिस्तान में.

Monday, January 02, 2006

अधूरा पोस्ट

२००६ की शुरुआत तो बहुत मजेदार रही. एक मित्र के यहाँ पार्टी में गए. बढिया खाना-पीना, कैरम, ताश आदि खेल और देर रात तक अंताक्शरी का कार्यक्रम चला. मौज करने का बहाना है, वर्ना सभी दिन एक से ही होते हैं. १ जनवरी की सुबह कौन सा सुरज पश्चिम से निकलता है.

आज-कल मित्रों और घर के काम की वजह से बढिया बकर नही हो पा रही है यहाँ. दिमाग उलझा है जीवन के छोटे-बङे कार्यों में, संधर्षों में. चल रहा है जितना ईन्दौर में छप्पन की चाट दुकानें. क्या है की जबर बकास निकालने के लिए दिमाग एक तरह की अघोरी बाबा उज्जैन वाले तरह की सोच में रहना चाहिए, तबही ईंसान का ध्यान दुनिया भर की बकवास में जाता है. जैसे मानो आप ट्रेन में जा रहे हों तो अगर आप किसी किताब में लगे हैं तो आप का ध्यान साहनी साहब के बकवास ईश्तिहार पर जाने से तो रहा. तो अभी ईस पोस्ट को अधूरा मान के समाप्त करता हुँ. आज-कल में कुछ ज्यादा विषय सामग्री वाला पन्ना काला करुँगा.