Monday, August 28, 2006

छुट्टी की बातें

पहले तो प्रत्यक्षा को साधुवाद लिखने का आईडिया देने का. हमने सोचा चलो हमहुँ छुट्टी के बारे में लिखें. कुछ समय कटे मेरा और आपका. शनिवार से चालु होती है छुट्टी. सुबह जल्दी उठने की आदत है तो मैं सुबह ७ बजे तक जाग ही जाता हुँ. नियम से भारत में सभी को फोन करता हुँ. साढे सात बजे से टैनिस खेलने का कार्यक्रम प्रारंभ होता है अगर मौसम साथ दे तो. नही तो स्कवाश खेला जाता है. १० बजे तक. फिर खरीददारी का रुख होता है, तुरत फुरत. हमें शौक है गन्दी सन्दी सबजियाँ महँगे दाम खरीदने का. इसलिऍ हम दोनो ही आरगेनिक खाना खरीदते हैं जिसमे पेस्टिसाईड का प्रयोग नही होता. दोपहर का खाना बाहर खाने के बाद बालक की फरमाईश पुरी करने के लिऍ अकसर हमें चिड़ियाघर में पाया जाता है. कई बार समझाया बेटा नानी मामा और मम्मी से काम चला लो, पर लगता है उनसे हफ्ते भर में बोर हो जाता है. कई बार पिज्जा और गेम पारलर की भी फरमाईश हो चुकी है जो पूरी की जाती है. वैसे विडियो गेम खेलने में मजा मुझे भी बहुत आता है.
शाम को मै बनता हुँ घसियारा माली. मेरी पत्नी के हिसाब से यह काम मेरी कँजुसी को डिफाइन करता है. महीने के १२० डालर बचाने के लिऍ में हर शनिवार ४ से ५ तक घास काटता हुँ और बागड़ की कटाई करता हुँ. मित्रों के टपकने का अकसर यही समय होता है जिसके कारण मेरी पत्नी अकसर दुखी पाई जाती हैं की क्योँ माली टाईप ईमेज दिखाते हो. मेरा मानना है की मुझसे कभी उधार नही माँगे जाने की वजह ही यही है की जो माली के १२० नही खर्च करेगा उससे कौन उधार माँगेगा. शाम को अकसर मित्रों के साथ हाहा ठीठी और फिल्मों मे समय बीत जाता है. कई बार ताश, कैरम की महफिल भी लग जाती है और शहर भर के आलु समोसों में पक जाते हैं. ११ बजे तक सबको भगा कर अगले दिन की नौटंकी का प्लान बनाया जाता है.

5 Comments:

Blogger Pratyaksha said...

4 से 5 छोड कर बाकी तो मस्ती है आपकी

9:12 PM  
Blogger Jitendra Chaudhary said...

सही है।
चिडि़याघर,मामा,मम्मी का आइडिया सही है।

माली वाला काम बन्द कर दो, नही तो दोस्त यार सोचने लगेंगे, माली के पैसे तो बचा ही लिए होंगे, चलो उधार मांगा जाए।

कुछ फालतू के फितूर पाल लो, जैसे ब्लॉग लिखना(रेग्यूलर), टिप्पणी करना। हम भी चाहेंगे कि तुम अपनी बीबी के सत्यवचन सुनने से वंचित ना रहो। बाकी भली करेंगे राम।

9:48 PM  
Anonymous Anonymous said...

नमस्ते! ...शुक्रिया मेर्री कविता पसँद करने का...सब काम करने वालोँ की छुट्टीयाँ लगभग समान ही होती है!

3:02 AM  
Blogger renu ahuja said...

कमाल है, जब अगले दिन भी नौटंकी ही संभावित है, तो प्लान कैसा..... अंत मे.
-श्रीमति रेणू आहूजा.

7:30 AM  
Anonymous Anonymous said...

वाह ! क्या दिनचर्या है गायतोंडे महाराज की . अमेरिका जा कर भी घास खोदने/छीलने/काटने से बाज नहीं आए. बउदी की नाराज़गी एक तरफ़ और गांधी के देश का सच्चा सपूत होना दूसरी तरफ़. भारी लोचा है .

2:11 AM  

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