Sunday, April 23, 2006

Cool Code Monkey song

Code Monkey Song

My Life, my song.

Saturday, April 22, 2006

रजनीश भाई के सवालों के जवाब

Question --- (कुल मिला कर आर्थिक रुप से सम्पन्न जीवन मिल रहा है भारत में. आज भी पर भारत में रहना घाटे का सौदा है केवल आर्थिक रुप से देखा जाऍ तो) काली भईया, इन दोनों बातों का आपसी मेल समझ नहीं आया।

Answer -- मित्र चुँकी आप संगीत पसंग हैं; फर्क है इन दो गानो काः

आ जा की जिन्दगी है छोटी
अपने घर पर भी है रोटी

बाप बडा न भईया
न ईश्वर है ना मईया
द होल थिंग इस दैट की भईया सबसे बडा रुपइया.

Question -- थोड़ा ठीक से समझाईए. अंत की कुछ बातें भी ऊपर से निकल गईं।
Answer -- सीधा हिसाब है की हरे पत्ते को पाना बहुत मुश्किल और रिस्की रास्ता हो गया है अतः ग्यानी जन बसने का ईरादा त्याग कर कंम्पनियाँ कूदते रहते हैं

Question -- कुल मिलाकर बात ये समझ नहीं आई कि अभी आप वहां ख़ुश हैं कि नहीं
Answer -- हम तो ठहरे यायावरी रमते जोगी. धन से प्रेम बहुत है पर जीवन धन से बहुत उपर है. वैसे भी हमारा हरा पत्ता मिल चुका है तो हम इस समस्या से मुक्त हैं.

Oye Baba long time no see -- kidda baba oye mainu dassi

समय का पहिया कुछ हीरो होन्डा की गति से घूम रहा है मित्र जनों. किसी महान दार्शनिक ने कहा है की समय ‌और सन्तोष का ३६ का आँकडा है. जो फुरसतिया हो गया वो जी गया वरना दौड मेरे चूहे तुझे पैसा मिलेगा. मैने न्युयार्क पहुँच कर जितने लालच को देखा है वो कहीँ नही देखा. किसी कि भी आँखों मे चमक देखनी हो तो बस उसे कुछ भी बोलो जिससे लगे की धन प्राप्ति होगी. नीरस से नीरस जीव जी उठेगा. काफी नकली लोग देखे. ६ डालर की लाते की चु्स्की मारते हैं पर पार्किंग का १ डालर का टिकिट नही खरीदते. ऍक देसी दुकान में २ मैनहेटनड भारतीय महिलाओं की वार्तालाप कुछ युँ रही. "यु नो आइ टेक पापड ऍन स्टफ फोर वेन आइ फील नोस्टालजिक, नोट गुड फोर हेल्थ" हमको देख कर कुछ आँखे मटकाई , उपर से नीचे तक टटोला, "टू देसी चिपो केटेगरी" में डाला और लाईन काटने की कोशिश करी हमसे. हमारा जवाब कल

Monday, April 03, 2006

हरे पत्ते का दर्द.

मेरे पास आओ मेरे दोस्तों ऍक किस्सा सुनाऊँ.
केसे बताऊँ रेटरोगेशन की रात थी,
सबके सब अटके हरे पत्ते की बात थी

चला जा रहा था में डरता हुआ
वीसा आज ऍकस्पायर हुआ कल ऍक्सपायर हुआ
बोलो बुश महाराज की जय
बोलो रिपब्लिकन पार्टी की जय.

अकसर मुझसे पूछा जाता है की भारतीय पढी लिखी जनता भारत क्यों लौट रही है. मुख्य कारण तो खैर भारत में बढती तनख्वाह है. मेरे सभी मित्रजन २० लाख सालाना या ज्यादा कमा रहे हैं. कट-कटा कर भी लाख रुपया महीने तो मिल ही रहे हैं. कुल मिला कर आर्थिक रुप से सम्पन्न जीवन मिल रहा है भारत में. आज भी पर भारत में रहना घाटे का सौदा है केवल आर्थिक रुप से देखा जाऍ तो. सुख-सुविधा के मामले में भारत में अभी भी कई समस्याऍ होती हैं.
दूसरा प्रमुख कारण है परिवार का भारत में होना.
तीसरा प्रमुख कारण है अमेरिका का मूर्खतापूर्ण रवैया ईम्मिग्रेशन के बारे में. आजकल अधिकांश लोगों को ५ से ८ साल का समय लग रहा है. केलिफोर्निया, नयुयोर्क और अन्य अप्रवासी बहुल जगहों पर शायद और भी ज्यादा. मुश्किल यह है की इस दौरान नौकरी नही बदली जा सकती. नही तो सारी प्रकिया शुरुआत से चालू करनी पडती है. तो जब कम्पनियां कई बार इस का फायदा उठा कर प्रमोशन, तनख्वाह वगैरह नही बढातीं. तो समझो आपका कैरियर अटका ५ से ८ साल के अंतराल के लिऍ. ईस बीच अगर कंपनी डूबी या आपको निकाला गया तो फिर चलो लाईन के अंत में. कुल मिला कर जीवन में स्थिरता और उन्नति पर रोक लग जाती है हरे पत्ते के बिना. ईस परिस्थिति में जो निपुण भारतीय हैं वो अकसर ब्रिटेन या भारत का रसता नाप लेते हैं. जो भारत सरकार के गिफ्ट किऍ मेघावी युवावर्ग मिल रहा है अमेरिका को मुफ्त में उसे काहे को लौटा रहे हैं समझ नही आ रहा है. अब मेरे जैसे लोग पिछले ८ साल में अमेरिका को जितना टैक्स दिया है कई लोग जीवन भर नही देते हैं. पढाने बढाने का खर्चा पढा कुल मिला कर ० अमेरिका पर. तो भैया काहे नही रख रहे हो जो मुफ्त में काम करने वाले गधे मिल रहे हैं.
दूसरा नुकसान होता है नौकरियाँ बाहर जाने का. समझो में बैंगलोर जाता हुँ. तो क्या काम तो करुँगा साफ्टवेयर का ही. अभी अमेरिका में पैसा रहता है, तब भारत में रहेगा. नुकसान किसका ? कम्पनियाँ फायदे में रहे्गी पर अमेरिकी समाज घाटे में. यह बात जिसकी समझ में आई वो है जॉन मैकेन पर बेचारा नेतागिरी में कुछ ज्यादा नही कर सकता.

सभी जनता अब बकझक चालु करे और अपने विचार सामने रखे.

वैसे मेरा हरा पत्ता ३ साल पहले मिल चुका है.