वापस
भीमसेन साहब के राग विहग को सुन कर मन कुलबुलाया, ऊगलियोँ में कुछ बैचेनी सी महसुस हुई और लगने लगी दनादन मार की-बोर्ड पर. चलो हम वापस आ गऍ. अपनी मात्रा की गलतियोँ, सोच की अपरिपक्वता लिये हुऍ. पढने का मन हो तो पढो, नही तो आगे बढो. जैसे चिठ्ठा जगत के पितामह कह दिये "हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिह" तो हम भी ईसी भाव से लिखेंगे. किसी के मन में मात्रादोष ठीक करने का कीडा हो तो हमारे बचपन के हिन्दी के मास्टर का नम्बर भेज देंगे. सभी भारी भरकम बुजुर्ग जनों को साधुवाद. वैसे कोई बताऍ लाल साहब ईतने भारी हैं, कम्बख्त उडन तश्तरी कैसे उडती होगी.
आज तो वापसी करी है, जरा सुस्ता लुँ यारो बहुत दिनों के बाद लौटा हुँ भाटबाजी की दुकान में. रफत में आने में समय तो लगेगा.
आज तो वापसी करी है, जरा सुस्ता लुँ यारो बहुत दिनों के बाद लौटा हुँ भाटबाजी की दुकान में. रफत में आने में समय तो लगेगा.
3 Comments:
अमां इत्ते दिनो बाद आए, और इत्ती छोटी पोस्ट?
और वो कॉकटेल अकेले ही पी गए?
हम तो इन्तज़ार करते ही रह गए।
बहुत दिन बाद दिखे आप , लेकिन पोस्ट को इतनी छोटी देखकर मजा नही आया . आगे इंतजार रहेगा .
अरे महाराज, किसी से क्या पूछते हो, हम ही बतायेंगे न किसी रोज कि उड़न तश्तरी कैसे उड़ती है. हा हा!! इंतजार करो. जरा लंबा चौड़ा लिखो-जब इतने दिन बाद लिखे हो तो!!
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