खिचडी
वापसी पर तुरत फुरत तैनात स्वीट सिक्सटिन जीतु भैया (इनके सोलह ब्लाग जो ह)ैं ने याद दिला दिया कि काकटेल रेसिपी तो रह ही गई है. कोई बात नही, मधुशाला के मतवालों के लिये पोस्ट के अन्त में बहेगी हाला.
डाक्टर साहब भी मटरगश्ती करते हुऍ चिठ्ठे पर आये. इनके पोस्ट पर जो लाईनें लगी हैं
"छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार ।
आँखो भर आकाश है बाँहों भर संसार ॥"
मुझे काफी सोचने वाले खतरनाक मूड में ले गई है. जब भी मैने सोचा है कुछ जबरदस्त हुआ है. जैसे मेरी पुरी थिसिस का सार ऍक सोच में ही निकला था. या फिर अमेरिका जाने का ईरादा भी सिर्फ ऍक दोपहर की सोच का निर्णय था. देखो आज क्या निकलता है मेरी सोच से.
कुछ दिनों पहले मैने फ्रीकोनोमिक्स नामक किताब चाटी. बहुत मजेदार हट के सोचा है. स्टेटिसटिक्स के साथ कामन सेन्स को जोड कर जो चिन्तन मन्थन किया है वो सराहनीय ही नही प्रेरणादायी भी है. जरुर पडिये कहीं न कहीं कुछ तो चमकेगा ही. जैसे मुझे लगा की फिनिक्स में अगर तीन ट्रेनें डाल दिये जाऍं तो ट्रेफिक समस्या काफी हद तक निपट जाऍगी.
आज कल मैं बौद्घ धर्म पर किताब पड रहा हुँ. मेरा मानना है की धर्म की सोच की गहराई उस समय के समाज के मानसिक स्तर का सीधा माप है. वैसे में नासतिक हुँ तो मेरा रुझान सिर्फ फिलोसोफी के छात्र के रुझान समान है, जीवन में आत्मसार करने लायक ऍक सम्पुर्ण सोच कुछ अभी तक मिली नही है। तो जगह जगह से उठाई और बनाई अधकचरी खिचडी.
चलिये बौद्घ धर्म से काकटेल तक.
१ भाग आइरिश विस्की
१.५ भाग आईरिश क्रीम
बर्फ के उपर विस्की ग्लास में डालें और टुन्न होने तक ना पीयें.
डाक्टर साहब भी मटरगश्ती करते हुऍ चिठ्ठे पर आये. इनके पोस्ट पर जो लाईनें लगी हैं
"छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार ।
आँखो भर आकाश है बाँहों भर संसार ॥"
मुझे काफी सोचने वाले खतरनाक मूड में ले गई है. जब भी मैने सोचा है कुछ जबरदस्त हुआ है. जैसे मेरी पुरी थिसिस का सार ऍक सोच में ही निकला था. या फिर अमेरिका जाने का ईरादा भी सिर्फ ऍक दोपहर की सोच का निर्णय था. देखो आज क्या निकलता है मेरी सोच से.
कुछ दिनों पहले मैने फ्रीकोनोमिक्स नामक किताब चाटी. बहुत मजेदार हट के सोचा है. स्टेटिसटिक्स के साथ कामन सेन्स को जोड कर जो चिन्तन मन्थन किया है वो सराहनीय ही नही प्रेरणादायी भी है. जरुर पडिये कहीं न कहीं कुछ तो चमकेगा ही. जैसे मुझे लगा की फिनिक्स में अगर तीन ट्रेनें डाल दिये जाऍं तो ट्रेफिक समस्या काफी हद तक निपट जाऍगी.
आज कल मैं बौद्घ धर्म पर किताब पड रहा हुँ. मेरा मानना है की धर्म की सोच की गहराई उस समय के समाज के मानसिक स्तर का सीधा माप है. वैसे में नासतिक हुँ तो मेरा रुझान सिर्फ फिलोसोफी के छात्र के रुझान समान है, जीवन में आत्मसार करने लायक ऍक सम्पुर्ण सोच कुछ अभी तक मिली नही है। तो जगह जगह से उठाई और बनाई अधकचरी खिचडी.
चलिये बौद्घ धर्म से काकटेल तक.
१ भाग आइरिश विस्की
१.५ भाग आईरिश क्रीम
बर्फ के उपर विस्की ग्लास में डालें और टुन्न होने तक ना पीयें.
3 Comments:
वाह! भाई क्या खिचड़ी है।
I really liked ur post, thanks for sharing. Keep writing. I discovered a good site for bloggers check out this www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.
Nazar Na hoti to nazare na hote
Raat Na banti to sitare na hote
Kuchh to Rab ka karam hai hum par
Varna Itne achhe dost aap hamare na hote.
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