Saturday, September 24, 2005

ओपरा हो गया मुफ्त

जी हाँ दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ब्राउसर अब मुफ्त में. प्रयोग कर के देखें कभी दुबारा आ.ई. पर नही लौटेंगे यह हमारी गारन्टी है. लिन्क यहाँ पर. Free Opera !

फुरसतिया ने गाली गलौच का जिक्र किया तो भोपाल की याद ताजा हो गई. भोपाल में गाली देना एक कला है. बोलने वाले के लहजे से समझा जाता है की गाली किस ज्जबात से दी गई है. जवाब भी विविध प्रकार के हो सकते हैं. एक दोस्ताना जवाबी गाली से लेकर एक गुप्ती घोंपने के प्रयास तक. वैसे गाली गलौच मुख्यत: अनपढ तबके और स्कुल कालेज के लङकों तक ही सीमित रहता है. कालेज से निकलने के बाद गाली गलौच सुनाई देना एक अपवाद बन जाता है. सुना है सूरत में गाली गलौच रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा है.

कार्य क्षेत्र में अतयन्त व्यस्तता का माहौल खिंचा हुआ है. अब हम ठहरे ठिठोलीबाज. बढी मुश्किल होती है गम्भीरता का नाटक करने में.

पापी मोर्टगेज का सवाल है,
मचा दफ्तर मेंं बवाल है,
सिरियसली काम कब करोगे
पुछता अफसर यह सवाल है.

करोगे भी कुछ काम
की बस आराम का प्रोग्राम है,
यहाँ तुम ठिठोली कर रहे हो,
ऊपर हो रहा ले-आफ का ईंतेजाम है.

क्सटमर का फोन आएगा
सुबह सुबह वो गर्जाएगा
आज-कल करते दो महीने बीते
ऐसी तीन-चार बातें और सुनाएगा.

समय रहते कुछ बना दो भईया
राह सभी अब तकते हैं
समय पर परोडकट नही मिला तो
याद रखो, गाली टेस्टर भी बकते हैं.

Tuesday, September 20, 2005

Carpal Tunnel

Sunday, September 18, 2005

चटनी !

२५० ग्राम धनिया पत्ती, १० हरी मिर्चें, २-३ लहसन की कलियाँ, ५० ग्राम पूदिना,नमक स्वादानुसार. मिक्सर में घोंटें.
जम के खाईए फिर गाना गाईए - ऊफ ऊफ मिर्चे, वुह वुह मिर्चे
मुँह से खाएँगे, आह पीछे से निकलेगी ५-६ घन्टे बाद. मेरी निकल रही है सुबह-२. ३ चक्कर लग चुके हैं खेत मैदान के. असर जबर है. देखें ठन्डे दुध से कितनी ठन्डक मिलती है. ये आग कब बुझेगी. ईन्सान को अपनी लिमिट में रहना कितना जरुरी है. अबे जब ईतने सालों से फीका खा रिया था तो क्या जरुरत थी मिर्ची ठुंसने की.

देख तू दिल से , .. से उठता है,
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है.

चिन्गारी कोई भङके तो सावन उसे बुझाए,
मिर्ची जो अगन लगाए उसे कौन बुझाए.

Thursday, September 15, 2005

कुछ खास नही

पिछले कुछ दिनों से कारपल टनल का असर रहा इसलिए कुछ ज्यादा चेपना का योग नही बना. अब जब हाथ का दर्द चला गया है तो दिल ने कचोटा की कुछ भौंकाच करी जाए. पिछले कुछ दिन द्रुत गति से बीते. कुछ नए काम का जोर रहा. मैने यहाँ पोलेटेकनिक में रात्रि कक्षा में पढाना चालु किया है, तो रफत में आने में वहाँ वक्त लगा. ईतने में कुछ जनमदिन बीत गए. पुरानी फिल्मों के चन्चल जीतेन्दर समान वयक्तित्व वाले जीतु भैया का जन्मदिवस बहुत बढिया बीता. सोचनेे विचारने में बहुत सारा समय गया. जो मुख्य विचार ईन दिनों मेरे दिमाग से गुजरे या जिनमें मुझसे सलाह मांगी गई वह हैं:
१)अमेरिका में अब ग्रीन कार्ड मिलने में बहुत समय लगने वाला है. औसतन ५-७ साल का समय लगने वाला है. ईस संदर्भ में कई मित्रों ने फोन पर अपनी भङास निकाली. हम ने सहानुभुति दिखाीई. कुछ ने देस पलायन के बारे में पूछा. हमने हामी भरी. कुछ ने यहाँ के सरकारी महकमें को भरकस गाली दी. हमने साथ निभाया. जो जैसा मिला हम उस रन्ग रन्गे. मन में तो यही सोचा की "जाके पांव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई". हमारी पत्नी जो हर रोज आ अब लौट चलें की एश्वर्या राय बनी रहती हैं उनहे जानकर बहुत दुख हुआ की हम पर कोई फरक नही पङने वाला है.
२) कैटरिना में बुश प्रशासन के निकम्मेपन ने सोचने पर मजबुर कर दिया की साला एक मच्छर पूरे देस को निकम्मा बना देता है.
३) आजकल पहाङी पर साईकिल चलाने का जोश है. गिर कर पहली बार महसुस हुआ की कुछ जरुरत से ज्यादा ईशटाईल मारी जा रही है. ईसलिए अब हैलमेट पहनना शुुरु कर दिया है.
४)हमने आजकल गणित पढना शुरु किया है. केलकुलस, स्टेटिसटिक्स और परोबेबिलिटि. जम कर गणित पढा जा रहा है. मन बार - २ भाग कर स्कुल के दिनों में चला जाता है. अगर अपने बचपन के दिन याद करने हों तो ऐसा कुछ करिए. खैर नोस्टालजिया से अपना कभी रिश्ता रहा नही है. परिवर्तन जीवन का नीयम है. काल - जगह (सपेस टाीईम ) के चौकोनी आयाम में से कुछ कभी वापस नही आया पर यह गीत क्या मालुुम कैसे आ गया.
"यादें भीगी यादें,
तुमको, मिटने ना दें.
देखा जो हाथ बढा के,
सपनो के रेश्मी धागे,
झूटे लगे रिश्ते टूटे लगे."

Saturday, September 03, 2005

खिचङी

लो आज फिर हम आ टपके
रोजमर्रा की बाते कहेंगे कुछ हटके
देश विदेश की खबरों के पुलिन्दे में
खााऐंगे चने जाहे जबान पर लगें चटके

बातें करें कुछ देश महान की
केतरिना के प्रलय कान्ड की
बहते सङते अवशेषों से शहर भरे
उनमें सहारा तलाशते अश्वेत ईन्सान की

बात करें कुछ नवाबी शान की
शिशु हिरण के रक्तपान की
कानुन मर्यादा की पहुँच से परे
बुढे शेेर के शाही खानदान की

बात करें मेरे भारत महान की
ईटली से लाईं हुक्मरान की,
सत्ता कुन्जी को अपने दामन में धरे,
देश चला रही बहू फिरोज खान की.

तो आज फिर हम आ टपके,
चाहे हमने लगाने कुछ नए झटके,
'नकी'और 'के'की खिचङी बना काली
पतली गली से झटपट सटके.