Sunday, September 18, 2005

चटनी !

२५० ग्राम धनिया पत्ती, १० हरी मिर्चें, २-३ लहसन की कलियाँ, ५० ग्राम पूदिना,नमक स्वादानुसार. मिक्सर में घोंटें.
जम के खाईए फिर गाना गाईए - ऊफ ऊफ मिर्चे, वुह वुह मिर्चे
मुँह से खाएँगे, आह पीछे से निकलेगी ५-६ घन्टे बाद. मेरी निकल रही है सुबह-२. ३ चक्कर लग चुके हैं खेत मैदान के. असर जबर है. देखें ठन्डे दुध से कितनी ठन्डक मिलती है. ये आग कब बुझेगी. ईन्सान को अपनी लिमिट में रहना कितना जरुरी है. अबे जब ईतने सालों से फीका खा रिया था तो क्या जरुरत थी मिर्ची ठुंसने की.

देख तू दिल से , .. से उठता है,
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है.

चिन्गारी कोई भङके तो सावन उसे बुझाए,
मिर्ची जो अगन लगाए उसे कौन बुझाए.

2 Comments:

Blogger Jitendra Chaudhary said...

झकास, बहुत दिनो बाद लिखे हो.दिल से लिखे हो. जब तक तुम्हारा मिर्चीकान्ड पूरा ना हो, दिल से सम्बंधित गाने गाओ...
"मेरे दिल मे आज क्या है, तू कहे तो मै दिखा दूँ"
"दिल का आलम मै क्या बताऊँ तुझे.."

बस एक काम करना, मन ही मन "दिल" शब्द को "पिछवाड़े" से रिप्लेस कर लेना, जितने ज्यादा दिल से सम्बंधित गाने गाओगे, उतना ज्यादा मजा आयेगा. कल बताना कितना मजा आया.

9:09 AM  
Blogger अनुनाद सिंह said...

काली भिया , तुम्हारी दुर्दशा देखकर मजा आ गया । अभी पीडा कुछ कम हुई या नहीं ?

8:29 PM  

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