हमारी हिन्दी वेब दुनिया मेॅ भान्ति-भान्ति के जीव पाये जाते हैॅ. एक नजर डाली जाए उनपर जिनका रोजगार ही कम्पयुटर से सीधा जुडा है.वैसे तो हैं लोग भिन्न-भिन्न भाषा,सोच,सामाजिक तथा पारिवारिक परिवेष के पर कई समानताऐ हैं जो मैने अपने ईर्द गिर्द मन्डराते कम्पयुटर श्रमिकों में पायी हैं. कुछ चुनिन्दा समानताऐं पेशे खिदमत हैं. टिप्पणी करना ना भूलें.
टिप्पणी देख सीना फुलाते
जीतु भैया और हम,
प्रोतसाहन के भूखे हैं सभी,
चाहे हों देवगण या यम
1) अधीरता : मेरे ख्याल से हमें कम्पयुटर की दुनिया में रहते रहते असली दुनिया बहुत सुस्त और बोरिन्ग लगने लगती है. जैसे बागबानी को ही ले लिया जाए. बीज बोने से लेकर फूल खिलने जितने समय में तो आप ईन्टरनेट पर तमाम फूलों के बारे में सजीव सचित्र वर्णन पढ देख सकते हैं. अब आप ही बताऐं ईनमे मेल कैसा ? जब आधा से ज्यादा समय हम कम्पयुटर की दुनिया में रहते हैं तो फिर जरा हमसे ऐडजस्ट कीजिए ना.
2) आलस्य : हमें तो किसी भी काम को करने के सबसे सफल तरीके के ईजाद करने का कार्य सौंपा जाता है, काम तो मशीने ही करती हैं. तो भई हम सबसे बढिया तरीका बता देंगे,कार्य जजमान स्वयॅ सम्पन्न करें. हरी ॐ
3) लाॉॅजिक : क्या करें कम्पयुटर मरदुदे को लाॉॅजिक के अलावा कोई भाषा समझ नही आती. अब सुबह से शाम तक सी, जाावा आदि भाषाओं के प्रयोग के बाद सब कुछ भई एकदम सीधा, सरल, लाॉॉॅजिकल चाहिए. अब अगर हमने पुछा की " बेगम क्या बात है, परेशान दिख रही हैं " तो हमारे दिमाग के सर्किट में कुछ ऐसा होता है " if(Wife.isTroubled()) { discussFurther(); } else { playGames();} ". तो सवाल एक ही बार पूछा जाता है. कृपया तुरन्त सीधा, स्पष्ट जवाब दिया जाए. " सीखो ना नैनो कि भाषा पिया " गीत गाने के पहले "Eye Language For Dummies" की सोफ्ट काॉॅपी जरुुर दे दी जाए पडने को.
कितनी ही अन्य खुबियाॉॉॅ मेरे दिमाग में घूम रही हैं पर ईस भाग में ईतना ही. शीर्घ ही चेपूॅगा अगला भाग.
जाते जाते यह घटिया पेरोडी झेलें
पटे कहाॉॉॅ से कम्पयुटर औ
जग की जोडी ठीक नही-
जग जर्जर प्रतिदिन, प्रतिक्षण, पर
नित्य नवेली कम्पयुटर बाला.