Friday, December 17, 2004

बकझक

आज ऐक बहुत ही अजीब सा सयोंग बैठा । अतुल जी का लेख अभी पङ कर उठे ही थे की पाता ऐक झबरू काला कुत्ता सङक जो सङक किनारे पङा था जैेसे अमेरिका में बिना नौकरी के देसी । पाया की बेचारा कुत्ता बङा डरा सहमा सा था । अब देसी तो था नही की हर स्थिति में मौज । हमने उस कुत्ते से थोङा भाई चारा दिखाया । आखिर उसकी स्थिति से हम भी गुजरे थे जब अमेरिका आऐ थे । खैर फिर मालकिन आई दौङते हाफँते । कुत्ते को गले लगाया । हमसे सिर्फ थेन्कयु ! दिल तो करा सुना दें कि क्या हममें काटें लगे हैं पर मौहल्ला धर्म निभाया और बत्तीसी ही दिखाई ।

आज हमारा ऍच आई वी टेस्ट हुआ । नही नही सभ्य और नेकनीयत ही हैं, ईमिगरेशन के लिऐ हुआ था । हमसे पूछा और कोई बिमारी । हमने कहा ऍच आई वी नही ऍच वन बी से पीङित हैं । डाँकटर देसी था खूब हसाँ ।
यह शेर याद आ गयाः

दोस्त बन कर भी नही साथ निभाने वाला
वो ही अन्दाज है जालिम का जमाने वाला

2 Comments:

Blogger अनूप शुक्ल said...

शायद इसी के लिये कहा गया है:-

कोई हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नये मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो.

2:27 AM  
Blogger Kalicharan said...

वाह अनूप जी क्या शेर कहा है वाह

7:15 AM  

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