Saturday, December 04, 2004

पीरगेट की महिमा

झीलों के शहर भोपाल में ऐक परम पावन स्थल है "पीरगेट" नहीं नहीं किसी पीर की मजार नही है वहाँ मिलते हैं ऐक से बङकर ऐक भोपाली दूनिया भर की बकासी, रोज नई ताजी
ऐक रोज मर्रा का किस्सा सुनिऍः

दोस्त = क्यों खाँ मामू ! केऐसे हो ?
मैकेनिक = मजे में, और बोलो खाँ क्या चललया हे ? क्या जलवे मचा रिऐ हो ?
दोस्त = बस मामू, जमाना काट रिया है, अपन कटवा रिऐ हैं पुख ठीक हुई क्या मामू ?
मैकेनिक = अमाँ भन्नाट फर्रा रही है लो टेरायल कल्लो
दोस्त = गजब ! अच्छा मामू कटें
मैकेनिक = खाँ ! पेसे ??
दोस्त = सोरी यार बिरेक के बजाय, ऐकसिलरेटर दब गया
मैकेनिक = अमाँ जब लङकी और गाङी रेडी होते हैं तो अकसर बिरेक के बजाय
ऐकसिलरेटर ही दबता है

5 Comments:

Blogger आलोक said...

पुख?

1:34 AM  
Blogger Kalicharan said...

Hero company ki sabse jaandar shandar gadi - Hero Puch !

3:03 AM  
Blogger इंद्र अवस्थी said...

बहुत सही, सूरमा भोपाली का आनंद आ गया!
यह खाँ क्या अमां यार की तरह लगता है भोपाल में, इसका प्रयोग क्या सारे भोपाली करते हैं और क्या इसका प्रयोग सिर्फ दोस्तों में होता है या सबके साथ किया जा सकता है? कृपया खुलासा करें.

ऐसे ही और मजेदार किस्से सुनायें भोपाल के!

8:12 PM  
Blogger Unknown said...

बहुत सही खां, मज़ा आ गिया सूरमा भोपाली को। किया सुनाया है!

2:35 AM  
Blogger eSwami said...

एक इन्दौर की सुनो ...

एक बार यार लोग पिकनिक मनाने गए, एक बिहार का बन्दा भी था साथ.. जनता पहाडी पे चढ गई, ऊपर जा के बिहारी झुक-झुक के खई में झांक के देख रहा है ... एक इन्दौरी बोला - "अबे ज्यादा मत झुक, नया हो जायेगा" ... उसकी इस फिलासाफ़ी पे बाकी इन्दौरियों का हंस-हंस के बुरा हाल और बिहारी के कुछ पल्ले नी पडी पूछे "नया कैसे होंगे हम"...और हंसी. क्या दिन थे यार.

7:22 PM  

Post a Comment

<< Home