Saturday, January 22, 2005

छायावाद ऐट आल

भई ई‍स्वामी के चिठ्ठे ने बचपन का वाक्या याद करा दिया | बात तब की है जब १५ साल उमर रही होगी | दिमाग क्या था खुरापातों की उपजाऊ जमीन थी | हिन्दी कमजोर हमेशा से थी जैसे सभी ऍम. पी. वालों की होती है | हिन्दी पङाते थे शुक्ला जी, कानपुर वाले, पक्के बम्मन, हिन्दी के महान विद्वान, खङूस नम्बर १ और विद्यार्थी की मार मार के अर्थी उठाने के लिऍ सदैव तत्पर | शुक्ला जी की क्लास में चूलबाजी करना मतलब बिना पैसे खर्चे मालिश और उनकी मुफ्त बूट पालिश | छायावाद से याद आया की क्या बेटी थी शुक्ला की छाया नाम की | ‌आप को छायावाद से पन्त याद आऍ या वर्मा, हमे तो हमेशा छाया शुक्ला ही याद रहेगी |

शुक्ला ऍक दिन बहुत गम्भीरता से पङाते हुऍ बोले
"ना नारी बिन सारी है ना सारी बिन नारी है,
नारी है तो सारी है, सारी है तो नारी है | "
अब आप ही बोलिऍ दिमाग दौङेगा की नही, तो हमने भी सोचा और अपने मित्र से बोले
"यार मजा तो तभी है जब नारी भी हो, सारी भी हो पर नारी बिन सारी हो " | मूर्ख बिलकुल आपकी तरह खींसे निपोरने लगा | शुक्ला का पारा गरम हुआ | मित्र ने दोस्ती निभाई और सरकारी गवाह की तरह हमारा महावाक्य ऊगल दिया | जनता हँसी, शुक्ला ऊबला और मैने जो मार खायी, अल्लाह ! सोच के ही दर्द हो उठता है |

2 Comments:

Blogger eSwami said...

हाहा .. नारी-सारी पढ के उपमा-अलंकार याद आ गए. क्या रट्टे लगा के पास करते थे.

6:35 PM  
Blogger Raman said...

सही है .. स्कूल के दिनों की याद आ गई ..

12:34 PM  

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