Sunday, August 21, 2005

तुम मुझे टिप्पणी दो मै तुम्हे टिप्पणी दूगां

जी हाँ इसी गुरुमन्त्र को ले कर निकल पडे हैं ये महाशय. पहले इन्होने कहीँ से लिस्ट जुगाडी ढेर सारे ब्लागरस की,शायद पिछले कुछ दिनो मे किसने चिठ्ठाया ऐसी कुछ सुविधा ढुढीं. फिर सबके चिठ्ठों पर छोड आए तारीफ के कुछ बोल, जिन्हे जनाब ने शायद सामुहिक चिठ्ठी उत्पाद प्रणाली का उपयोग कर के चन्द मिन्टो में ना जाने कितनो के चिठ्ठों पर चेप दिया. अन्धा क्या मान्गे, १ आँख (२ तो विलासिता की चरम सीमा हो गई, २ आँखो के दान पर १००० अन्धे बैठे हैं. हाँ अगर आप स्वास्थय मन्त्रालय से सिफारिश लिखवा लाए हो तो महोदय १-२ की क्या चिन्ता भगवान नीलकन्ठ के समान त्रिनेत्रधारी भी बनाया जा सकता है.), भूखा क्या मान्गे मुरगी की टान्ग, प्यासा क्या माँगे ओल्ड मन्क के २ प्याले. तो सारे चिठ्ठाकार पहुँच गए ईन जनाब केचिठ्ठे पर. सबने ईनके चिठ्ठे पर सडते माँस की कहानी पडी और ऊबकाीई मार के निकल लेने के बजाय जम के ऐहसान-ए-तारीफां को सराहा. काली बोले इतने महीनो से चापे रहे यह दिमाग कयों नही चला बे. बहरहाल दया के पात्र चिठ्ठाकारों का एक चिठ्ठे पर जमावडा देखना हो तो जरुर देखें.

2 Comments:

Blogger अनूप शुक्ल said...

ब्लाग पर टिप्पणी का महत्व के बारे में पहले भी गुरुमंत्र दिये जा चुके हैं। पढ़ो तथा कुछ गुर लो। यह भी जानकारी ले लो कि जिन्होंने यह मंत्र दिया वे भी जब मिलते हैं तो नमस्कार बाद में करते हैं टिप्पणी की फरियाद पहले करते हैं।

10:42 PM  
Blogger Sunil Deepak said...

काली जी, आप को वो लोककथा तो मालूम होगी जहाँ अच्छे आदमी को दुनिया में खोज कर कोई बुरा नहीं मिला और बुरे आदमी को खोज कर भी अच्छा नहीं मिला. शायद सच्ची या झूठी टिप्पड़ीं वाली बात भी वैसी ही हो ? सुनील

6:49 AM  

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