Monday, February 28, 2005

घरोंदा

लम्बे अन्तराल के बाद आज तङके वक्त मिला है लिख पाने के लिऍ | मामला यह है कि हमने विचार किया है की नया घर खरीदा जाऍ | जब हम यह ऊवाचे तो श्रीमती जी की तो बाँछे खिल गई मतलब यह निश्चित हो गया की नया घर तो अब लेना ही पङेगा |
मामला शुरु हुआ बरोकर से | भारतीय मूल के मित्रजन अपने भारतीय मित्रों के नाम गिनाने लगे पर हमने वही बरोकर लिया जिसे हमारे दो सहमक्कारों ने पहले इस्तेमाल किया था | ईससे कई मित्र रूठ भी गऐ हैं | बरोकर कया है बोतल का जिन है | महोदय पूरे जोर शोर से हमारे कार्य पर लग गऐ हैं | भाई का जब देखो तब फोन आता है " ऐक कस्टमर है, ले आऊँ ? " | मतलब काम धाम छोङ के भागो बसन्ती तान्गेवाली की तरह | ऊपर से समस्या यह है की घर ईतने पटा पट बिक रहे हैं की देखने के पहले ही मालूम पङता है की कोई और खाँ साहब अपनी पलटन के साथ घुस गऍ है घर में | मामला यह हो गया है की घर देखो और वहीँ के वहीं कीमत बोलो | अब क्या बताऐं हम भोपाली जरा आरामतलब जीव होते हैं ईतनी मेहनत कहाँ से करें | समस्या यह है की अपने घर का सौदा हो गया है तो अब तो हर हालत में नया घर २ से ३ हफ्ते मे ढून्ढना ही पङेगा | तो आज फिर भोजनावकाश के समय भागो घर देखने के लिऐ |

दिल ढुंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन , बैठे रहे तस्सवूरे खाना किऐ हुऐ :)

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