Tuesday, November 08, 2005

हँसी

बङे-२ रिसर्च करने वाले तमाम डाक्टरों ने कुछ एक आदमी और औरतों के दिमाग पर तार लगा कर उनको मजेदार किस्से कहानियाँ सुनाए. फिर दिमाग के विभिन्न हिस्सों मे गतिविधि देख कर बोाला की पुरुषों को स्लेपस्टीक कामेडी ज्यादा पसंद रहती है पर महिलाएं कम ही किस्सों पर हँसती है, बहुत सोच विचार कर हँसती हैं पर खुल कर हँसती हैं. पर मेरे हिसाब से यह गलत है. मेरे हिसाब से महिलाएँ तब हँसती हैं जब लाईट वगैरह सही हो जिस्से उनकी हँसी में निखार लगे. आधी तो हँसी हम फूहङ तो नहीं लग रहीं जैसे विचारों मे ही चली जाती है. मैने कई पुरुष मित्रों को बत्तीसी निपोरते, मसूङे फाङते, सर पीट - २ कर आँसु निकाल - २ कर हँसते देखा है. पर किसी महिला मित्र को करीना छाप स्माईल मार के या प्रिति जिंटा की तरह चुलबुली हँसी से कभी भी ज्यादा हँसते नही देखा. यह सब मैं शायद ईसलिए सोच रहा हुँ क्योंकि राजू श्रीवास्तव और सुनील पाल के कार्यक्रम के अलावा मैने बहुत दिनों से ठहाका मार कर नही हँसा है.

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