Thursday, March 31, 2005

होली

सुबह नींद खुली मेरे दोस्तों की आवाज से | "चल उठ कपङे बदल ३ मिनिट में नही तो यहीं पुता " | किसी तरह दौङ भाग कर कपङे बदले | घर मे थोङा गुस्सा था मेरे आलस पर, वो भी होली के दिन | अब कल रात को होलिका दहन पर क्या करें ज्यादा मौज मस्ति हो गई | खैर तेजी से दौङ लगाई और घर के बाहर | छपाक ! ऊफ्फ कङाके की ठंड उसपर ठंडा पानी | बहुत जोरदार शुरुआत हुई थी दिन की | २ ३ घन्टे रंगदारी का सिलसिला चला | रंगो में रंग कर दोस्ती के रंग चङे | कुछ चेहरे और हसीन हुऍ |

गुजिया , मठरी , शन्करपाङे, चकली , सेन्व के २ ३ दौर चले | फिर दोस्तों ने पिलाई ठन्डाई | कुछ रंग का और कुछ भंग का नशा ऍसे सर चढ के बोला की काफी देर तक हूल्लङ नाच गाने का प्रसन्ग चला | ३ बजे करीब घर का रुख किया |

खाना खा कर जो नींद लगी तो बस अभी खुली है | पर यह क्या रन्ग तो अपने आप निकल गया | तन पर जो रंग लगे थे वो तो १० साल पहले उतर गऍ , मन पर चढे रंग होली के मौसम में निखर आते हैं युँ ही सपनो में |

आँख खुली तो मैने पाया
नई दुनिया नव जीवन
पर कहीं मन के गलियारे से
झांक रहा है मेरा बचपन

0 Comments:

Post a Comment

<< Home