९वी अनुगूँज - आशा ही जीवन है
१ घन्टा हो गया साला दिमाग आशावाद का चश्मा पहनने को तैयार ही नही है | कब से समझा रहा हुँ पहन लो बेटा लेख लिखना है पर दिमाग नही ईस्वामी हो गया, नही करूँगा जो ना मन भाया | अपना ऍसा है भईया की हैप्पी गो लकी टाईप ही रहा है कुछ मामला |
जीवन के सफर मै
कुछ पाया है कुछ खोया है
दिल में कई तस्वीरों को
प्रेम से सजोंया है
क्या है की आशावाद बोलते ही याद आता है बन्गाल के गाँव मे मैला कपङा डाले गन्दे पानी के डबके में मछली पकङते बच्चे, हाईवे पर अनगिनत ढाबों पर काम करते बच्चे, रेलवे प्लेटफार्म पर भीख मान्गते बच्चे, होटलों मे प्लेटे साफ करते बच्चे | मै तो आशावादी हो जाऊँ पर इन शोषित बच्चों को आशा की किरण कहाँ से दिखाऊँ |
क्या है की परचा तो छाप दुँ की कैसे विषमतियों मे सन्घर्ध करें, आशावादी रहें पर दिल है की मानता नही | देश का भविष्य काफी अन्घकारमय ही दिख रहा है | ऍडस फैल रहा है | आबादी दनादन बङे जा रही है | सामाजिक चेतना जैसी कुछ चीज मैने भारतवर्ष में देखी नही | अराजकता हर तरफ व्यापत है | धर्म कर्म के नाम पर आशावादी बन जाऊँ पर अल्लाह और भगवान ने अमेरीका में तो दोसती कर ली किन्तु भारत में तकरार चालु है | ऍक बार वो सुलह कर लें तो उनके नाम पर आशावादी हो जाऊँगा | तब तक आशावाद पर ताला लगा कर चुपचाप विदेश में बैठा हुँ |
जीवन के सफर मै
कुछ पाया है कुछ खोया है
दिल में कई तस्वीरों को
प्रेम से सजोंया है
क्या है की आशावाद बोलते ही याद आता है बन्गाल के गाँव मे मैला कपङा डाले गन्दे पानी के डबके में मछली पकङते बच्चे, हाईवे पर अनगिनत ढाबों पर काम करते बच्चे, रेलवे प्लेटफार्म पर भीख मान्गते बच्चे, होटलों मे प्लेटे साफ करते बच्चे | मै तो आशावादी हो जाऊँ पर इन शोषित बच्चों को आशा की किरण कहाँ से दिखाऊँ |
क्या है की परचा तो छाप दुँ की कैसे विषमतियों मे सन्घर्ध करें, आशावादी रहें पर दिल है की मानता नही | देश का भविष्य काफी अन्घकारमय ही दिख रहा है | ऍडस फैल रहा है | आबादी दनादन बङे जा रही है | सामाजिक चेतना जैसी कुछ चीज मैने भारतवर्ष में देखी नही | अराजकता हर तरफ व्यापत है | धर्म कर्म के नाम पर आशावादी बन जाऊँ पर अल्लाह और भगवान ने अमेरीका में तो दोसती कर ली किन्तु भारत में तकरार चालु है | ऍक बार वो सुलह कर लें तो उनके नाम पर आशावादी हो जाऊँगा | तब तक आशावाद पर ताला लगा कर चुपचाप विदेश में बैठा हुँ |
2 Comments:
भैयाजी,
हम तो दुःखी हैं ही लेकिन आप तो विदेश में भी हमसे भी ज्यादा दुःखी दिखते हो।
लगता है आप भी काफ़ी निराशावादी हैं, मैं भी कोशिश करता रहता हूं आशावादी बने रहने की लेकिन बीच बीच में निराशावादी विचार आ ही जाते है.
आपने बच्चों की समस्याओं के बारे में लिखा है. इसी सिलसिले में निदा फाजली का ये शेर पेश करके बात समाप्त करता हूं.
घर से मस्जि़द है बहुत दूर,चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये
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