Saturday, May 07, 2005

राह कौनसी पाऊँ में

साधुजन जीवन कभी कभी बहुत कठिन सवाल सामने ला देता है | अब देखिये मेरे कम्पयुटर की मुख्य डिस्क ईस लोक से पलायन करने वाली है | सारी सामग्री दुसरी डिस्क पर स्थान्तरित कर ली है | समस्या यह है ओपरेटिंग सिस्टम खरीदुं की नही ? श्रीमती जी ने अभी से फरमान बता दिया है की ओपरेटिंग सिस्टम बिल्लू बादशाह की दुकान से ही आऍगा | अब बिल्लू बादशाह को १०० डालर दान देने से तो अच्छा है की दान भाव से खर्च करुँ | किन्तु कहीँ मन कचोट रहा है सरकारी माल को घर पर ईस्तेमाल करने में | पर यह कया देविक शक्तियाँ मुझे खीँच रही हैं ईंस पन्ने पर ! धन्य है यह मायाजाल ! धन्य है प्रभु की माया ! सारी समस्याओं का समाधान हो गया | जैसे महात्मा बुद्ध को बोधिगया में अनुभव हुआ था उसका बहुत ही डायलुटेड वरशन मुझे अभी महसुस हो रहा है | जब लोग अपने घर में रहने का किराया ले सकते हैं तो फिर यह तो मैं ऐक आध बार सरकारी मेल चेक कर के सही उपयोग में ले ही आऊँगा |

3 Comments:

Blogger विजय ठाकुर said...

महारथी, आपको तो निर्वाण मिल गया लगता है।

12:46 PM  
Blogger अनूप शुक्ल said...

बोध तब मिला था जब वो गृहत्यागी बने थे.कहीं महाजनों का पथ अनुसरण का विचार तो नहीं बन रहा.

8:01 PM  
Blogger Deepak said...

विकिपीडिया हिन्दी में योगदान करना न भूलें
hi.wikipedia.org

5:18 PM  

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