Saturday, November 19, 2005

जीवन चलायमान है

कदम-कदम पर राहें गढता,
कठिनाईयों को चीर तू बढता,
अगिनत आकांक्षाोओं की थामे कमान है
जीवन चलायमान है

पथ दुर्गम, मन लोभी,
प्रिय जनों ने राहें रोकी,
कर्म-भूमी के शोर्य में ही तेरे अहं का निदान है
जीवन चलायमान है

पथ कंटक तेरे पग को दलता,
शूल मन के घावों को सलता,
सेेवामार्ग पर चलने मे ही तेरा सम्मान है
जीवन चलायमान है

3 Comments:

Blogger मिर्ची सेठ said...

काली बाबू आप तो एक दम सीरीयस हो गए। बढ़िया लिखे हो खासकर यह वाली लाइन

"कर्म-भूमी के शोर्य में ही तेरे अहं का निदान है"

पंकज

12:14 AM  
Blogger अनूप शुक्ल said...

कालीभैया ये तुम्हारी कविता बताती है कि आदमी चाहे तो क्या नहीं कर सकता? कविता तक लिख सकता है। बधाई।

6:35 AM  
Blogger Laxmi said...

काली जी,
अच्छी कविता लिखी है। बधाई।

8:09 PM  

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