Sunday, June 19, 2005

माजरा क्या है


बन्धुजन माजरा यह है की "सौ मेॅ नब्बे बेेेेईमान फिर भी मेरा भारत महान". तो कुछ जमीनी हकीकतोॉ से रुबरु हो जाएॅ :
१) उत्तर प्रदेॅॅॅॅश की आबादी (१७ करोड) से केवल ४ देॅॅश ज्यादा आबादी रखते हैॅ, पर क्षेत्रफल के मुताबिक उत्तर प्रदेॅॅॅॅश कोलराडो से छोटा है.
२) दक्षिण भारत मे जनसन्खया दर २ बच्चे प्रति स्त्री पर आ चुकी है किन्तुू उत्तर भारत मे अभी भी ३ बच्चे प्रति स्त्री का औसत है.
३ भारत की 48 प्रतिशत जनसख्याा अनपढ है. महिलाऐ और निचली मानी जाने वाली समुदायो मे अनपढ समस्या और प्रगाढ है.
४ अगर हम इसी दर से बढते रहे तो हम २०५० तक १.५ अरब पर पहुॅच चुके होगे.
५ भारत की जनसन्खया का सबसे बडा हिस्सा (तकरीबन ५०%) २५ से कम उम्र का है जो अब वयस्क हो रहा है.

तो देखा जाए की मानसिकता क्या है :
१) दहेज - लडकी बन जाती है आर्थिक बोझ. दहेज कीा अग्नि मे प्रतिवर्ष २५ हजार महिलाीऐ जल जाति है. यह सरकारी आॅकडा है.
२) बुढापे का सहारा / कुलदीपक जैसे दकियानुसी विचार. साथ मे कुछ धार्मिक "सन्सकार".
३) जितने हाथ होॅगे उतना पैसा घर आएगा , ईस तरह की सोच.
४) एक बच्चा नही बचा वयस्क होने तक तो ? ईस लिए कमसकम २ लडके तो होना ही चाहिए. सही भी है जब उत्तर प्रदेॅॅॅॅश मे १० मे से १ बच्चा ५ साल की उमर नही देख पाता है.

उपर लिखे और अन्य कारणो ने देश की आबादी की समस्या को प्रगाढ कर दिया है.

गरीबी, जनसॅख्या, शिक्षा के अभाव की मूलभूत समस्याााऔ के गर्भ से निकलते है बेरोजगारी जिस्से पनपता है अपराध अपने कई रुपो मे जैसे की भृषट नेता, रिश्वतखोर सरकारी मजमा, कर की चोरी, चोरी चपाटी,अपहरण इत्यादि.

समस्या का निवारण ढुन्ढने ज्यादा दुर जाने की जरुरत नही है, पडोस मे झान्क कर देखा जाऐ. सन्जय गान्धी की जरुरत है देश को. सारी सरकारी नौकरियो मे १ से ज्यादा बच्चे वालो की उन्नति रोक दी जाए. ईतना ही क्यो हर सरकारी नौकर जिसके बच्चे है उसकी नसबन्दी कर दी जाए. नही मानो तो हाथ धो नौकरी से. सरकारी सहयोग तथा ऋण प्राप्ति के लिए भी यही नियम रखे जाए.
५५ अाबादी खेती पर निर्भर है. तो क्यो ना हाीौौीईबरिड फसलो पर तथा खेती के लिए पानी पर जोर दिया जाए. कारीगरी पर जोर दिया जाए जिस्से खेती पर निर्भरता कम हो.

मेरा यह मानना है की अगर राजनैतिक दल लोकप्रिय वोटरो को लुभाने वाली राजनीति से उपर उठे तो १ पीढि मे ही हम पिछली पीढि की बेेवकुफी को सुधार सकते है. अगर समाज अभी नही चेता तो फिर भुखमरी,अकाल, बिमारी तथा चरमराता ढाॅचा ही आखिरकार जनसन्खया को कम कर देगा.

3 Comments:

Blogger अनुनाद सिंह said...

दिक्कत ये है कि ये घंटी बिल्ली के गले में बाधेगा कौन ?
अनुनाद

8:04 PM  
Blogger Kalicharan said...

ha ha bahut sahi. Hum to kher hote. Waise to hum kauno keh rhe hain ke padawar saaf kar do per bhaiye jara samjho, adjust karo population ko, ya phir NRI baan jao.

2:18 PM  
Anonymous Anonymous said...

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10:34 PM  

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