Saturday, October 22, 2005

डूुुुुउउउउउउम

अगर कोीई आपसे पूछे की आपने कालेज के दिनों में क्या किया तो मेरा जवाब होगा - डूम खेला.उन दिनों होस्टल में नयी नवेली कम्पयुटर लेब बनी थी. सिरियल पोर्ट पर तार लगा कर सबको आपस में जोङा गया जिससे बङा साधारण पर कामगार नेटवर्क बना. मास्टर जनो की धारणा रही थी कि छात्रजन बिना ईनटरनेट के ईन डब्बों पर काम के अलावा क्या करेंगे. बेचारे जानते नही थे डूम को. जिस दिन से डूम का चस्का लङकों को लगा बस सारी रात होस्टल के निशाचारी जीव एक दुसरे को राकेट लान्चर, बम, मशीनगन ईत्यादि से मरते मारते पाए जाने लगे. मारने वालों के तरीके भी निराले. कुछ धीरे से आपको ढूंढ कर खतम कर देंगे और कुरसी से मुस्की मारेंगे चुपचाप. कुछ मारेंगे तो छिप कर ही पर मारते ही लैब में अट्टाहस गुँजेगा जिसके अंत में विजय घोषणा होगी "निपटा दिया साले को". कुछ मारेंगे सता सता के "पारो तो दिख रहा है. बेटे छिप जा कार के पीछे. अच्छा बिलडिंग में चला है, जा बेटा जा." मरने वाला भगे जा रहा है.

अब देखिए खिलाङी भी भिन्न - २ प्रकार के. कुछ घात लगा के शिकार करने वाले. छिपे हैं कोने में जहाँ कोीई दिखा मारा और दौङ कर छुप गए. यह लोग बहुत खतरनाक और अकसर मुस्कीबाज श्रेणी में गिने जाते थे. कुछ जिनके हाथ में जबरदस्त हथियार आया की वो पागल. दना दन बिना सोचे हर जगह बमबारी. यह अकसर सबसे जलदी निपटते थे. ईस श्रेणी मे अधिकांश अट्टाहस प्रेमी होते थे जो जबर गाली मारते थे मारने वाले को. ईनको मारना माने खानदान में नुक्स निकलवाना. कुछ जिने बली के बकरे माना जाता था. मारो में तो ऐसे ही मरने आया हुँ. यह अकसर मीठी गाली देते थे. "अरे कुत्ते मै ही मिला था" जैसे. कुछ गठबंधन बना के खेलने वाले. खेल शुरु होने से पहले ही गठबंधन बन जाएगा. ईनको अकसर शिकारी कुत्ते के नाम से पुकारा जाता था. जब ईन में कोई गद्दारी हुई फिर तो हाॉथापाई का माहौल लैब में शुरु. २-३ दिन तक बात बंद.

तो मामला एसा है की ईस महिमामंडित खेल के आधार पर फिल्म बन कर कल ही रिलीज हुई है. शाहरुख, सैफ महिलाप्रधान, प्रेम, परिवार टाईप फिल्में पसंद करने वाली हमारी पत्नीश्री ने साफ मना कर दिया है तो मित्र मंडली से गुहार करी जा रही है चलने की. देखें कोई बकरा मिलता है क्या.

आज का डूम फ्लेवर काकटेल
३ भाग वोडका
५ भाग लाल बैल (या स्वादानुसार कोई भी शक्ति पेय)
जबरदस्त वीरु ताकत के लिए

Friday, October 21, 2005

बक की झक या झकाझक बक

नींंद आती नही सारी सारी रात. रात के १ बज रहे हैं. ऊल्लु भी सो गए हैं, यकीन कीजिए एक को चैट पर संदेश छोङा था. हम काफी गंभीरता से सोच कर और ग्यानी जनों के साथ गुढ चिंतन कर के ईस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं की यह समय अनाप सनाप मौलिक मुख पादन, प्रचंड मानसिक रस-स्वादन, विस्मयकारक सोच विचारन हेतु एकदम उपयुक्त समय है. इसकी वजह क्या हो सकती है, इस पर सोचने का भी इस से बढिया समय नही हो सकता. मेरा मत है की दिमाग १६ घंटे जगने के बाद ज्यादा गरम हो जाता है तथा अलौकिक ग्यान गंगा का प्रवाह आसान हो जाता है. जब पेट में सही मात्रा में पित्त का निर्माण हो चुका होता है तो शरीर के अंदर के रसायन अपनी नियमित स्थिति छोङ कर भिन्न - भिन्न प्रकार के गठ-बंधन बना लेते हैं ठीक वैसे जैसे की कांग्रेस - मार्कसवादी गठ-बंधन है. शारिरिक रसायनों की ईस दुर्लभ स्थिति तथा मस्तिष्क के बढे हुए तापमान से जो मानसिक लावा निकलता है वही सही मायने में एक इंसान और रिपबलिकन के बीच का अंतर स्पष्ट करता है.
तो ईस समय मेरे मस्तिष्क में घूम रहा है यह विचार की कम्पयुटर के सिद्धांतो में और कई सनातन धार्मिक विचारों मे कितना मेल है. गीाता में भगवान कृष्ण ने जब अपना संसार संग्रहित करने वाला विराट अस्तित्‌व जब अर्जुन को दिखा अनुग्रहित किया तब वो बोले की सबसे सुक्षम कण से लेकर संपुर्ण ब्रमांड वही हैं. ईस सिध्दांत को आप आसानी से समझ सकते हैं अगर आपने रिकरसिव तकनीक को समझा हो. रिकरशन लगाएं सबसे छोटे कण पर तो ब्रमांड बना लेंगे कुछ प्रयोगात्मक छेङाछाङी से. ‌नही तो फरेकटल तकनीक से सोच कर देखें और एक सरल शुरुआत के कणों को बार बार प्रयोग कर आप जटील कार्यप्रणाली बना लेंगे. इनहेरिटेंस से बेहतर तरीका है समझने का की सभी जीव मौलिक रुप में एक ही हैं बस बाह्य रुप में भिन्नता है. जैसे किसी भी ओबजेक्ट को आप निखार दें इनहेरिटेंस से. आखिर सृष्टि के चक्र को देखें तो हर स्तर पर एक चक्र पाएंगे जैसे कोई विशाल फाईनाीईट स्टेट मशीन चल रही है जिसके हिस्से स्वयं कई भिन्न फाईनाीईट स्टेट मशीन हो जिनका मूल हारमोनिक आपकी साँस समान किसी सिस्टम घङी से तालमय बना के चल रहा हो.
खैेर बहुत हुआ अचानक विचार स्पनदन मदिरापान के लिए यह देखें मेरी नई मारगरिटा रेसिपी

3 भाग टकीला
1/2 भाग ट्रीपल सेक
3 भाग नींबु का रस
1 भाग संतरे का रस
2 भाग स्टराबेरी का रस
1/2 चम्मच अनार का रस

शेक करें और छक कर पीयें.

Monday, October 17, 2005

दूध उबल रहा है.

आज का दिन है "कोजागिरी पूर्णिमा" का. यानि भारत वर्ष में अनेकोनेक जगह दूध उबाला जाएगा. बढिया रात तक गली मोहल्लों में गीत संगीत का माहौल रहेगा.रात १२ बजे चकाचक औटाया हुआ,उबाला हुआ दूध पीया जाएगा.उबाल से सुझा कि हर जगह कैसे उबाल मचा है. कलकत्ता में बंगाली भाई उबल रहे हैं. दादा को हाथ मरोङ कर बाहर जो बैठा दिया है चपल चैपल चाचा ने. पुतले जले नारे बने पर भैया मोरे किरन मोरे का जरा दिल नही पसीजा. दादा की सुट्टी पुट्टी गुम है. "ए टु डालमिया, दैन फाल दादा" जैसी स्थिति बनी हुई है. हमाारा तो यही कहना है दादा से
"गर्दिश में हों तारे,
ना घबराना प्यारे,
गर तु हिम्मत ना हारे,
तो होंगे वारे-न्यारे"

यहाँ अमेरिका की जनता उबल रही है तेल, मकानों की कीमत गिरने के भय तथा ईराक युद्ध में रोज अमेरिकी नागरिकों की मौतों से. अर्थ शास्त्र के नियम वैसे तो यहाँ लागु होते नही हैं. जैसे सभी जागरुक जन जानते हैं अमेरिका प्रतिवर्ष दुनिया से कर्जा लेने में सबसे आगे है. आयात-निर्यात में ऐसी असमानता तथा दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की ऐसी आर्थिक बदहाली ईतिहास में कभी नही देखी गई. खैर मुद्दे की बात यह है की घरों की कीमतों ने यहाँ पर बाजार को स्थिर कर रखा था. लोग मकान के लोन को बढा कर उस पैसे को खर्च कर रहे थे. ईसी की वजह से खपत अच्छी रही और बाजार सम्भला रहा. जब यह मार्केट ठहराव पर आया तो असर सभी क्षेत्रों मे महसुस होगा. अब देखें क्या होता है आगे. ऊर्जा जिसमें तेल भी शामिल है, यही असली मुद्दा बन गई है. हम - आप तो ९० के दशक के खाङी युद्ध से ही लुट रहे है. अब चीन, भारत तथा अन्य देशों की बढती ऊर्जा माँग ने स्थिति चिन्ताजनक कर दी है, खासतौर पर बढी-२ गाङियोँ के मालिकों की. यह गाङियाँ १० मील प्रति गैलन का औसत देती हैं. बुश सरकार के निकम्मेपन की हर जगह थू - २ हो रही है पर रंग और धर्म के नाम पर वह भी चलेंगे २००८ तक और शायद फिर कोई धर्म के नाम पर चुनाव जीत कर आ जाए.

भारत के महामहिम अलग उबल रहे हैं गुगल अर्थ पर. बेेेवजह ही उबल रहे हैं मेरी माने तो. जिनके पास नक्शे नही होने चाहिए वो तो सेटेलाईट ईत्यादि के माध्यम से या फिर कहीं घूस खिला के निकाल ही लेंगे.

गुगल से याद पढा, यहाँ पर (फिनिक्स में) गुुगल कम्पनी नया आफिस खोल रही है. अब बेंगलोर तो है नही की हर कम्पनी आफिस खोले. सनसनी मची हुई है बाजार में. हर व्यक्ति स्वयँ को गुगल के अगले कर्मचारी के रुप में देख रहा है. हम अपनी औकात में बने हुए हैं पर आवेदन तो डाल ही दिए हैं. क्या पता अपनी ही निकल पङे. फायदा यह रहा की कमसकम ६०० लायक लोग यहाँ पर नौकरी करेंगे मतलब ४०० - ६०० नई नोकरियाँ फिनिक्स में बनेंगी. वैसे तो हम कम्पनी भक्त रहे (आखिर हमारी ईतनी हरामखोरी झेल कर भी हमें अभी तक रखा जो हुआ है) पर ईस देॅश में तो नौकरी का ऐसा ही कुछ हिसाब है की जहाँ अच्छी दिखे वहाँ फिसल लो.

फिनिक्स में आज बिन मौसम बरसात हुई. मजा आ गया बारिश की बुंदो की आवाज खिङकी के काँच पर सुनकर. कभी शाँति से सुनिएगा अगर नही सुना हो तो. या कभी नाव पर बैठ कर एकान्त में पानी के नाव से टकराने की आवाज को. एक अलग ही अनुभव है. भोपाल में बङे तालाब पर बैठ कर लहरों के थपेङों को सुनते हुए चने मुरमुरे चबाना, क्या जमाना था वो भी. अगर कभी भोपाल जाने का मौका लगे तो बढे तालाब पर और रविन्द्र भवन के पीछे की सङक पर कुछ समय जरुर बिताईएगा. एकांतचित्त बैठ कर मजा आ जाएगा. मौका लगे तो भदभदा बाँध भी जरुर जाएँ. जबलपुर में नर्मदा मैया पर बने बर्घी डैम पर भी कुछ ऐसा ही विहंगम नजारा रहता है. समुद्र के समान विशाल पानी का विस्तार जो जबलपुर से खँडवा को जोङ रहा है और हर तरफ हरियाली ही दिखाई देती है.

आज कोई एक ख्याल मन में नही आ रहा तो बेमकसद लिख रहा हुँ और आप भी अभी तक पढ रहे हैं.जाते जाते एक जोरदार रेसिपि:
२ भााग वोडका
१ भाग कालुआ
३ भाग क्रीम या दुध
बर्फ १/३ गिलास

सभी सामग्री शेक करें, लीजिए "व्हाीईट रशियन" तैयार.

भई बात शुरु हुई औटाए हुए दुध पर और मामला व्हाीईट रशियन पर आ गया है. बेहतरी ईसी में है की कलम घिसना अगली बार तक ले लिए बंद कर दिया जाए.